Sunday, June 10, 2012

Kachchi si dor

कोई  कच्ची सी डोर है जो बांधे है मुझे तुमसे
कुछ यादेँ हैं जो  रोके हैं मुझे अब तक.
 
मैं चाहता हूँ तुम्हे भुलाना पर तुम भूलने नहीं देती
कभी ख्वाबो में कभी ख्यालो में तुम बिन बुलाये आती हो
फिर नीद से जगाती हो और धीरे से मुस्कुराती हो   
अपने करीब होने का एहसास मुझे कराती हो.
 
जब पूंछता हूँ मैं वो सवाल, तुम गायब हो जाती हो
फिर मेरी बेचैनी बढती है, कभी साँस मेरी अटकती है  
फिर अचानक तुम नज़र आती हो फिर से मुझे सताती हो
फिर बंज़र ज़मीन पर बारिश की बूँद टपकती है 
तुम  चुपके से मेरे कानो मैं धीरे से कुछ कहती हो
फिर तुम्हे यादों में बसाकर मैं कहीं खो जाता हूँ
और ये कच्ची सी डोर कुछ और मजबूत हो जाती है.

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