मेरे जन्म के साथ ही वो औरत से बनी थी माँ ,
और अपनी आँखों से देखा था मैंने उन्हें पहली बार.
जिनकी कोख मैं बिताए थे मैंने नौ महीने,उनसे था ये मेरा पहला साक्षात्कार .
उन्होंने ही दिया था मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान,और कराई प्रकृति से मेरी पहचान .
कभी गुस्से में जो मारा था मुझे थप्पड़, तो गीला हो गया था तकिया उनका .
और थप्पड़ मारने का दर्द,बह रहा था आंसुओं में .
मैंने सीखा था उस रोज एक नया सबक, और जाना माँ के गुस्से में भी है ममता.
बीमारी मैं दवा है माँ का स्पर्श,
मुश्किल मैं उनका साथ है मेरी सबसे बड़ी ताकत.
माँ की खूबियों को मैं शब्दों में पिरो नहीं सकता,
माँ के ऋण से मैं कभी मुक्त हो नहीं सकता.
वो धरती पर भगवन हैं मेरे लिये,बिन मांगे जो देती हैं वरदान सदा.
उनके होंठों पर दुआ है मेरे लिये और आँखों में कामयाबी के सपने.
ईश्वर ने दी है उन्हें सृजन करने की अद्भुत क्षमता,और असीमित धैर्य भी.
मैंने उने बहुत है जगाया और सताया,अब चाहता हूँ मैं बस इतना विधाता,
न बनूँ कारण कभी उनके कष्ट का, न हों आंसूं उन आँखों में मेरी वजह से.
कायम रहे उनके चेहरे की मुस्कान सदा,
और न ही कभी कम हो उनके प्रति श्रद्धा.
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